नशीले पदार्थों और मद्यपान की रोकथाम के प्रति जागरूकता और शिक्षा नशीले पदार्थों और शराब की लत किसी एक व्यक्ति की ही नहीं बल्कि एक परिवार की, सामाजिक-सांस्कृतिक, स्वास्थ्य, राजनीतिक और विकास की समस्या है। यदि इस समस्या का समाधान नहीं किया जाता तो यह गरीबी को बढ़ावा देगी और राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, स्वस्थ मानवीय संसाधनों और राष्ट्र के कल्याण के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2004 में बताया गया है कि भारत में लगभग 73.2 मिलियन लोग मद्यपान और नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। मणिपुर और पंजाब जैसे राज्य नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार के अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों, जो क्रमश: स्वर्ण त्रिकोण और गोल्डन क्रेसेंट नाम से प्रचलित हैं, से नजदीकी के कारण गंभीर समस्या से जुझ रहे हैं। वे नशीले पदार्थों के अवैध कारोबारियों, दुरूपयोगकर्ताओं, मद्यपान के गंतव्य स्थल और नशीले पदार्थों तथा संबद्ध एचआईवी, विद्रोह, आतंकवाद और राजनीतिक अशांति की समस्याओं का केन्द्र बने हुए हैं।
पंजाब में किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि 67 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के एक सदस्य को नशीले पदार्थों अथवा शराब की लत है; 70 प्रतिशत युवाओं को नशीले पदार्थों तथा शराब पीने के लिए फंसाया गया; प्रत्येक तीसरे छात्र और प्रत्येक दसवीं छात्रा ने किसी न किसी बहाने नशा करना शुरू कर दिया है तथा कॉलेज जाने वाले दस छात्रों में से सात नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं।
मणिपुर में अनुमान लगाया गया है कि वहां लगभग 45,000 से लेकर 50,000 लोग नशा करते हैं, जिनमें से लगभग आधे लोग नशीली दवाओं के इंजेक्शन लगाते हैं। सर्वेक्षण से पता चला है कि 12 प्रतिशत नशेड़ी 15 वर्ष तक आयु समूह के हैं, 31.32 प्रतिशत 16-25 वर्ष आयु समूह के और 55.88 प्रतिशत 25-35 वर्ष आयु समूह के हैं।
नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में बढ़ती हुई संख्या सामान्य रूप में समाज को और खासतौर पर युवाओं (किशोर) को अपंग करने की दिशा में संकेत है। ये लोग मुख्य रूप से अपनी आयु की अतिसंवेदनशीलता, मित्रों के दबाव और प्रयोग करने के स्वभाव के कारण नशा करने लगते हैं। इन हालात में युवा वर्ग और उनके परिवार सर्वाधिक प्रभावित समूह का एक हिस्सा बन जाते हैं।
तथापि, नशीले पदार्थों के दुरूपयोग की समस्या, जो एचआईवी संक्रमण और एड्स जैसी नहीं है, एक गैर संचारी, निवार्य समस्या है, जिसे जागरूकता, रोकथाम की जानकारी, प्रोत्साहन, समर्थन आदि सेवाओं के संयुक्त प्रयासों से हल किया जा सकता है।
उपरोक्त पृष्ठभूमि में युवा मामले और खेल मंत्रालय की स्वायत संस्था, नेहरू युवा केन्द्र संगठन (एनवाईकेएस) ने साल भर चलने वाली एक पायलट परियोजना को कार्यान्वित किया। इस परियोजना का नाम रखा गया नशीले पदार्थों के दुरूपयोग और मद्यपान की रोकथाम के लिए जागरूकता और शिक्षा। इस परियोजना के लिए सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ने आर्थिक सहायता दी। यह परियोजना पंजाब में दस जिलों के 75 खंडों के 3,000 गावों में और मणिपुर में सात जिलों के 25 खंडों के 750 गांवों में कार्यान्वित की गई।
इस परियोजना के अधीन नशीले पदार्थों और शराब की लत को छुड़ाने के लिए विशेष रूप से किशोरों और युवाओं के अतिसंवेदनशील समूहों और उनके परिवारों तथा समुदाय के सदस्यों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। दूसरी ओर, ग्राम आधारित एऩवाईकेएस युवा क्लबों, महिला समूहों, ग्राम पंचायतों, स्थानीय राजनीतिक और धार्मिक नेताओं, गांवों के प्रभावशाली लोगों तथा सेवा प्रदाताओं जैसे हितधारकों का समर्थन जुटाया गया।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य शराब तथा नशीले पदार्थों की लत के रोकथाम के तरीकों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना था।
परियोजना को 3750 लक्षित गांवों में वास्तविक रूप में लागू करने से पहले इसके कार्यान्वयन संबंधी दिशा निर्देश, कार्य-योजना, समय रेखा, अपेक्षित परिणाम तथा रिपोर्टिंग के तौर-तरीके विकसित किए गए और एनवाईकेएस के क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को उनकी जानकारी दी गई। परियोजना के सफल कार्यान्वयन के वास्ते पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उपायुक्तों की अध्यक्षता में जिलों में विशेष सलाहकार समितियां गठित की गईं।
यह स्वयं सिद्ध है कि परियोजना की सफलता उसके कार्यकर्ताओं के ज्ञान और प्रेरणादायक स्तर और क्षमता निर्माण पर निर्भर करती है। इसलिए परियोजना के कार्यकर्ताओं को विभिन्न स्तरों पर सर्वोत्तम प्रशिक्षण देने के गंभीर प्रयास किए गए।
परियोजना के कारगर कार्यान्वयन के लिए उसकी गतिविधियों के निरीक्षण तथा निगरानी के साथ-साथ प्रशिक्षकों के रूप में कार्य करने के लिए जिला तथा राज्य स्तर पर 40 क्षेत्रीय कार्यकर्ता तैयार किए गए और उनके प्रशिक्षण के लिए दो-दो तथा चार-चार दिन की प्रशिक्षण एवं मीडिया कार्यशालाएं लगाई गईं। इस कार्यक्रम के दौरान आईईसी सामग्री स्थानीय भाषाओं में तैयार की गईं और परियोजना संबंधी गतिविधियों के दौरान वितरित की गई। इसी प्रकार खंड स्तर पर क्षेत्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दौरान 125 एनवाईकेएस राष्ट्रीय युवा कोर के स्वयं सेवकों को प्रशिक्षित किया गया।
17 जिलों में से प्रत्येक में सक्रिय भागीदारों और मुख्य हितधारकों का समर्थन प्राप्त करने के लिए एनवाईकेएस की अग्रणी युवा क्लबों और महिला समूह नेताओं, पीआरआई सदस्यों, धार्मिक और राजनीतिक नेताओं, जिला प्रशासन के विभागों के प्रमुखों, गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों, अभिभावकों, शिक्षकों, मीडिया के लोगों के लिए जिला स्तर पर एक-एक दिन के सम्मेलन आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम के अधीन 3,400 मुख्य हितधारकों ने कार्यक्रम में भाग लिया।
परियोजना के कार्यान्वयन की प्रक्रिया में स्थानीय युवाओं में स्वामित्व, सहभागिता और नेतृत्व की भावना सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक लक्षित गांव में से 10 युवा क्लब सदस्यों और नेताओं को इस तरह से चयनित किया गया कि उनमें से दो 13-19, 20-24, 25-29 , 30-35 और 35 से अधिक उम्र के आयु वर्ग के हों। साथ ही इनके अनुपात में क्रमश: 70 प्रतिशत पुरूष और 30 प्रतिशत महिलाएं हो। परिणामस्वरूप परियोजना के तहत स्थानीय गावों के कुल 37,500 एनवाईकेएस युवा नेताओं को चुना गया। उन्हें ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण दिया गया तथा उनकी क्षमताएं बढ़ाई गईं ताकि वे स्वैच्छिक रूप से निजी संपर्क और मित्र समूह शैक्षिक कार्यक्रम तथा गांवों में स्थानीय स्तर की गतिविधियां चला सकें।
एनवाईकेएस के प्रशिक्षित और प्रोत्साहित युवा क्लब के नेताओं और राष्ट्रीय युवा कोर स्वयंसेवाकों ने ग्राम पंचायत प्रधानों की अध्यक्षता में 3,750 ग्रामीण परामर्श समितियां गठित की, ताज़ा स्थिति, परियोजना के उद्देश्यों, अनुमानित परिणाम, विकसित गांव व्यापक कार्यान्वयन योजनाओं पर चर्चा की तथा यह भी सुनिश्चित किया कि ऐसी बैठकें नियमित रूप से आयोजित हों। इस प्रकिया से एक सक्षम माहौल बनाने, स्थानीय युवा नेताओं, महिला समूहों, राजनीतिक और धार्मिक नेताओं, परिवार तथा सामुदायिक सदस्यों को ग्रामीण स्तर पर परियोजना की गतिविधियों के लिए सहयोग करने, भागीदारी निभाने और कार्य करने हेतु जुटाने में मदद मिली।
व्यक्तिगत संपर्क और मित्र समूह शिक्षा कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित 37,500 स्थानीय गांव युवा क्लब सदस्यों में से प्रत्येक ने कम से कम अपने आयु वर्ग के चार व्यक्तियों को शिक्षित किया, उनके साथ प्राथमिक रोकथाम संदेश बांटें, उन्हे परामर्श और नशा-मुक्त सेवाएं दी, मिथ्याओं को दूर किया, जागरूकता और ज्ञान बढ़ाया तथा मीडिया कार्यशाला के तहत विकसित आईईसी सामग्री प्रदान की। जिन व्यक्तियों से संपर्क किया गया उन्हें प्रण लेने को भी कहा गया- 'मैं निर्णय लेता हूं कि मैं नशा/शराब नहीं लूंगा और दूसरों को ऐसा करने से रोकूंगा।'
इस गतिविधि के तहत कुल 3,75,000 युवाओं से संपर्क किया गया और इस प्रयास से ऐसे 62,654 व्यक्तियों की पहचान हुई जो किसी न किसी तरह का नशा करते थे।
एक प्रायोगिक योजना होने के कारण 17 वर्ष से कम आयु के केवल 680 नशा करने वालों को मुफ्त इलाज और परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई गईं। तथापि गंभीर समस्या पंजाब और मणिपुर में बनी हुई है जहां नशा करने वालों के इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं, देखरेख और सहयोग की कमी है।
इसके अतिरिक्त नशीली दवाओं के दुरूपयोग और उसके परिणामों पर शिक्षित करने के लिए कई गतिविधियां आयोजित की गईं। ग्रामीण स्तर पर खुले मंच पर चर्चाएं, विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान, नुक्कड़ नाटक, स्कूलों में चित्रकला प्रतियोगिता जैसी कई गतिविधियां चलाई गईं।
इन गतिविधियों के जरिए पंजाब और मणिपुर राज्य के 17 जिलों में 3,750 गांवों के 1,17,02,740 व्यक्तियों (65,26,956 पुरुष और 51,75,784 महिला) तक लाभ पहुंचा। इस बात की सराहना की जानी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति ने संबंधित गांव की एक या एकाधिक गतिविधियों में भाग लिया। इस कारण लाभार्थियों की वास्तविक संख्या उपर्युक्त वर्णित समग्र गतिविधि के अनुरुप लाभार्थियों की संख्या से कुछ कम हो सकती है।
परियोजना गतिविधियों के समाचार प्रमुख अखबारों में हजार से भी अधिक बार प्रकाशित हुए। पंजाब में दैनिक भास्कर, अजित, पंजाब केसरी, दैनिक जागरण, इंडियन, देश सेवक, पंजाब जागरण, कपूरथला केसरी, द ट्रिब्यून, पंजाबी ट्रिब्यून, जग बानी, नवन जमाना और मणिपुर में शंघाई एक्सप्रेस, पोकनपहम डेली न्यूज, नाहरओलगी थूडंग डेली न्यूज, गोशम न्यूज, मणिपुर एक्सप्रेस आदि समाचार पत्रों में ये समाचार प्रकाशित किए गए।
यह अनुभव किया गया कि वृहत् समाजिक जागृति, कार्यक्रम का स्वामित्व, युवा कार्यकर्ताओं की भागीदारी, किफायती कार्यान्वयन (प्रत्येक व्यक्ति पर तीन रुपए मात्र) मादक द्रव्यों और शराब पीने की प्रवृत्ति के बारे में खुलकर बातचीत करके इसके निवारण के लिए आगे आने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
· उच्चतर स्तर का राजनैतिक और आधिकारिक दृढ़निश्चय, समर्थन, नियमित बातचीत, इस पर आगे भी अनुसरण जारी रखने, विभिन्न स्तरों पर चलाए गए कार्यों की पहचान और सराहना।
· उपायुक्तों, समाज कल्याण विभागों के प्रमुख, रेड क्रॉस सोसाइटी और स्थानीय गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाए जाने वाले नशामुक्ति केन्द्रों की नियमित देखरेख, विशेषज्ञ और तकनीकी सहायता।
· स्थानीय विश्वास आधारित संगठन, धार्मिक और राजनैतिक नेता, ग्राम पंचायत प्रधान की प्रमुखता वाली ग्राम परामर्श समितियों का सहयोग, सतत माहौल का निर्माण, सामाजिक गतिशीलता, परियोजना गतिविधियों का दिशानिर्देश और कार्यान्वयन।
· इस प्रवृत्ति से प्रभावित होने वाले परिवार, अभिभावक और विशेषकर महिलाएं मदद देने के लिए कार्यकर्ता के रुप में काम करने के लिए सामने आईं।
· स्थानीय संसाधन गतिशीलता और किफायती क्रियान्वयन के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच में एनवाईकेएस के प्रशिक्षित कैडर, गांव के युवा क्लबों के शीर्ष सामने आएं और संबंधित गांव में सेवा के लिए तत्पर हुए तथा साथियों को प्रशिक्षण काफी महत्वपूर्ण रहा।
· यह समझते हुए कि मादक द्रव्यों और शराब पर निर्भरता उनकी सामाजिक समस्या है गांव के समुदायों ने इससे प्रभावी लोगों के भीतर इस समस्या के निवारण के लिए बातचीत की। और उनकी काउंसिलिंग और चिकित्सकीय मदद के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया।
एक वर्ष से भी कम अवधि की इस पायलट परियोजना के शुरुआती नतीजे सामाजिक और राजनैतिक तौर पर काफी प्रासंगिक और महत्वपूर्ण रहे हैं। हालांकि इसके लिए जो माहौल तैयार हुआ है उसे आगे भी लोगों के बीच बनाए रखना होगा। इसके लिए कार्यक्रमों को आगे भी पूरे समर्पण के साथ चलाते रहने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट 2004 की उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए एक राष्ट्रीय निवारण कार्यक्रम की ज़रुरत को खारिज नहीं किया जा सकता। अन्य कार्यक्रमों और शोधों से प्राप्त अनुभवों को देखते हुए इस पहल और मॉडल से प्राप्त लाभ को बाकी राज्य में भी दोहराया जा सकता है जिससे इसे वृहत राष्ट्रीय जन आंदोलन बनाया जा सके। (PIB) 16-जनवरी-2013 15:03 IST
मीणा/क्वात्रा/प्रियंका/विजयलक्ष्मी/शदीद/गीता-15
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