शुक्रवार, अप्रैल 26, 2013

सूफी मेले में छाई रही सियासत

साथ ही बांधे जाते रहे एक नए उठे हिन्दू नेता की तारीफों के पुल 
मामला कितना ही गैर सियासी क्यूं न हो पर सियासतदान अपनी सियासत से कभी बाज़ नहीं आते--उन्हें मालूम है शिक्षा हो या स्कूल ये सब गैर सियासी बातें है लेकिन स्कूल में क्या पढ़ाया जाये---किस ज़ुबान में पढ़ाया जाये---इस सब का फैसला सियासतदान ही करता है। 
इसी तरह जिंदगी के अन्य क्षेत्रों में भी चलता है। एक बार फिर इसका अहसास हुआ गत दिनों हुए एक मेले में। मेला सूफियाना था; बात होनी थी धर्म-कर्म की या फिर चर्चा होनी थी मस्त कर देने वाले सूफी गीत-संगीत की पर सियासतदानों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। 
कांग्रेस के नेता मंच से बार बार लुधियाना के एक ऐसे युवक की तारीफ़ कर रहे थे जो अक्सर अपने संगठन की तरफ से सिख खाडकुयों को खतरनाक आतंकी बताते हुए उन्हें जल्द से जल्द फंसी देने की मांग करता है। केवल यही नहीं; इस काम के लिए जल्लाद बनने को भी अपनी सेवाएं अर्पित करता है--जब एक कांग्रेसी पार्षद उस युवक को अपना भाई बताते हुए इस बात पर गर्व कर रहा था कि उसका यह भाई अब हिन्दू संगठनों की अगुवाई कर रहा है उस समय दरेसी मैदान के पंडाल में खड़े लोग बातें कर रहे थे--अब पता चला कि यह तो कांग्रेस के हिन्दू ट्रेड यूनियन फ्रंट का नेता है जिसे भारतीय जनता पार्टी की हिन्दू वोटें तोड़ने के लिए खड़ा किया गया है---तांकि कांग्रेस को फायदा पहुँचाया जा सके। 
सिख खाडकुयों के खिलाफ अक्सर बोलने वाले इस नए नए उभर रहे हिन्दू नेता की तारीफें सुन कर नगर निगम के हरचरन सिंह गोलवडिया भी चुप न रह सके। कहने लगे आजकल कलियुग का प्रभाव है---नौजवान जल्द भटक जाते हैं---पर हमें भटके हुए नौजवानों से नफरत नहीं करनी है---उन्हें प्रेम से समझा बुझा कर रास्ते पर लाना है पर मेयर साहिब की इस दूरअन्देशी भरी अक्ल की बात भी इन लोगों की समझ नहीं आई। 
यह लोग अपने हिन्दू भाई नेता की तारीफ़ पे तारीफ़ करते रहे----और सम्प्रदायक तनाव बढ़ाने वाली सियासत में खोये रहे। इस तरह की साम्प्रदायिक तारीफों से ऊब कर जब मेयर साहिब उठकर जाने लगे तो सियासत में खोये हुए यह नेता लोग उन्हें औपचारिक तौर पर भी यह कहना भूल गए कि अभी दो मिनट में रथ रवाना होना है---उसे आप अपने हाथों से रवाना करिए---इस बात पर उन लोगों ने बहुत बुरा मनाया जो मेयर साहिब को अपने हाथों यहाँ आने का निमन्त्रण दे कर आये थे। 
इतने में दो दिन गुज़र गए और मेले का तीसरा दिन आ गया। यह मेले का आखिरी दिन था----और जाने माने सूफी  गायक गुरदास मान मंच पर पहुँच चुके थे। अजीब इतफाक की यही हिन्दू नेता रात के इस सूफी आयोजन में वीआईपी गैलरी में बिराजमान था---और उधर मंच पर गुरदास मान ने इश्क का गिद्धा शुरू कर दिया---गुरदास मान ने अपने जाने पहचाने अंदाज़ में सिख शहीदों का ज़िक्र किया और कहा----
कदे सूली ते,कदे तम्बी ते---
कदे आरे ते---कदे रम्बी ते---
कदे चरखड़ीयां दे दन्दियाँ ते--
कदे सेज विचौणी कंडियां ते-- 
कदे तवियाँ ते--कड़े छवियाँ ते----
गुरदास मान गा रहे थे और वी आई पी गैलरी में बैठे इस तथाकथित युवा नेता का रंग उड़ा जा रहा था---और माथे के बल गहराते जा रहे थे।