रविवार, अप्रैल 22, 2012

अनिल रजिमवाले ने लुधियाना में कहीं खरी खरी बातें

इन्कलाब न बटन दबाने से आयेगा और न ही थाने पर हमला करने से
लुधियाना में भी बहुत उत्साह से मनाया गया लेनिन का जन्म दिन
मानव समाज को दरपेश समस्याएं किसी दैवी शकित की तरफ से नहीं बल्कि मानव के हाथों मानव की लूट खसूट के कारन ही पैदा हो रही हैं। यह विचार आज लुधियाना में आयोजित एक विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता व मार्क्सवादी दार्शनिक कामरेड अनिल रजिमवाले ने रखा। इस गोष्ठी का आयोजन भारतीय कमियूनिस्ट  पार्टी की लुधियाना इकाई ने सोवियत संघ के संस्थापक व्लादिमीर लेनिन के जन्म दिवस के अवसर पर किया गया था. इसके साथ ही पार्टी विश्व भूमि दिवस को मनाना भी नहीं भूली। 
न्याय व  बराबरी पर आधारित भारत के विकास मार्ग की चर्चा करते हुए विचार गोष्ठी में इस बात पर चिंता  व्यक्त की गयी कि महंगाई, न बराबरी और बेरोज़गारी जैसी समस्याएं बहुत ही तेज़ी से विकराल हो रही है। इस हकीकत को स्वीकार करने के साथ ही मार्क्सवादी दार्शनिक कमरे अनिल रजिमवाले ने चेताया कि न तो कोई बटन दबाने से इन्कलाब आयेगा और न ही किसी थाने पर हमला करने से। इन्कलाब अगर आयेगा तो उसे आप और हम जैसे आम आदमी ही लायेंगे। उन्होंने इसके लिए बार बार कार्ल मार्क्स के हवाले दिए और याद  कराया कि कार्ल मार्क्स के बताए रास्ते पर चल कर ही इन्कलाब आएगा। 
इस बेहद गंभीर मुद्दे पर बहुत ही सहजता से लगातार बोलते हुए कामरेड अनिल ने बीच बीच में शायरी का पुट देते हुए समझाया कि सुबह होती है शाम होती है तो यह किसी दैवी शक्ति के कारन नहीं बल्कि प्रकृति और  विज्ञानं के कारण हुआ करती है। साम्यवाद के सिद्धांतों की विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा हर विज्ञान ने मार्क्सवाद को और मजबूत किया, बार बार इसे सही साबित किया। इन्कलाब में हो रही देरी की तरफ संकेत करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया की न तो बटन दबाने से इन्कलाब आने वाला है और न ही थाने पर हमला करने से इन्कलाब आएगा। 
ढांडस बंधाते हुए उन्होंने कहा कि सरमायेदारी से समाजवाद की तरफ जाता रास्ता लम्बा भी है और कठिन भी।  उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारे लड़ने के कई तरीके हैं और जन संघर्षों का तरीका भी हमारा है। उन्होंने कहा कि इन्कलाब आयेगा और इस के लिए इन्कलाब के मार्क्सवादी सिद्धांत जन जन तक पहुँचाने होंगें। 
उन्होंने अपने लम्बे भाषण के बावजूद श्रोतायों को बांधे रखा। इंकलाबी सिद्धांतों के साथ साथ उन्होंने इतिहास की चर्चा भी की। उन्होंने अख़बार निकालने के काम को भी इकलाब के लिए सहायक बताया और तकनीकी विकास के सदुपयोग की तरफ इशारा करते हुए कहा कि मोबाईल और इंटरनेट का उपयोग भी इस कार्य के लिए किया जाना चाहिए। इस सेमिनार में डाक्टर अरुण मित्रा भी थे, डी पी मौड़ भी और कामरेड विजय कुमार भी।  कई अन्य कामरेड भी इस मौके पर मौजूद रहे। ख़ास बात यह रही कि गंभीर सी लग रही इस विशेष संगोष्ठी में महिलाएं भी बढ़ चढ़ कर शामिल थीं।  -रेक्टर कथूरिया  

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