शुक्रवार, अप्रैल 26, 2013

सूफी मेले में छाई रही सियासत

साथ ही बांधे जाते रहे एक नए उठे हिन्दू नेता की तारीफों के पुल 
मामला कितना ही गैर सियासी क्यूं न हो पर सियासतदान अपनी सियासत से कभी बाज़ नहीं आते--उन्हें मालूम है शिक्षा हो या स्कूल ये सब गैर सियासी बातें है लेकिन स्कूल में क्या पढ़ाया जाये---किस ज़ुबान में पढ़ाया जाये---इस सब का फैसला सियासतदान ही करता है। 
इसी तरह जिंदगी के अन्य क्षेत्रों में भी चलता है। एक बार फिर इसका अहसास हुआ गत दिनों हुए एक मेले में। मेला सूफियाना था; बात होनी थी धर्म-कर्म की या फिर चर्चा होनी थी मस्त कर देने वाले सूफी गीत-संगीत की पर सियासतदानों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। 
कांग्रेस के नेता मंच से बार बार लुधियाना के एक ऐसे युवक की तारीफ़ कर रहे थे जो अक्सर अपने संगठन की तरफ से सिख खाडकुयों को खतरनाक आतंकी बताते हुए उन्हें जल्द से जल्द फंसी देने की मांग करता है। केवल यही नहीं; इस काम के लिए जल्लाद बनने को भी अपनी सेवाएं अर्पित करता है--जब एक कांग्रेसी पार्षद उस युवक को अपना भाई बताते हुए इस बात पर गर्व कर रहा था कि उसका यह भाई अब हिन्दू संगठनों की अगुवाई कर रहा है उस समय दरेसी मैदान के पंडाल में खड़े लोग बातें कर रहे थे--अब पता चला कि यह तो कांग्रेस के हिन्दू ट्रेड यूनियन फ्रंट का नेता है जिसे भारतीय जनता पार्टी की हिन्दू वोटें तोड़ने के लिए खड़ा किया गया है---तांकि कांग्रेस को फायदा पहुँचाया जा सके। 
सिख खाडकुयों के खिलाफ अक्सर बोलने वाले इस नए नए उभर रहे हिन्दू नेता की तारीफें सुन कर नगर निगम के हरचरन सिंह गोलवडिया भी चुप न रह सके। कहने लगे आजकल कलियुग का प्रभाव है---नौजवान जल्द भटक जाते हैं---पर हमें भटके हुए नौजवानों से नफरत नहीं करनी है---उन्हें प्रेम से समझा बुझा कर रास्ते पर लाना है पर मेयर साहिब की इस दूरअन्देशी भरी अक्ल की बात भी इन लोगों की समझ नहीं आई। 
यह लोग अपने हिन्दू भाई नेता की तारीफ़ पे तारीफ़ करते रहे----और सम्प्रदायक तनाव बढ़ाने वाली सियासत में खोये रहे। इस तरह की साम्प्रदायिक तारीफों से ऊब कर जब मेयर साहिब उठकर जाने लगे तो सियासत में खोये हुए यह नेता लोग उन्हें औपचारिक तौर पर भी यह कहना भूल गए कि अभी दो मिनट में रथ रवाना होना है---उसे आप अपने हाथों से रवाना करिए---इस बात पर उन लोगों ने बहुत बुरा मनाया जो मेयर साहिब को अपने हाथों यहाँ आने का निमन्त्रण दे कर आये थे। 
इतने में दो दिन गुज़र गए और मेले का तीसरा दिन आ गया। यह मेले का आखिरी दिन था----और जाने माने सूफी  गायक गुरदास मान मंच पर पहुँच चुके थे। अजीब इतफाक की यही हिन्दू नेता रात के इस सूफी आयोजन में वीआईपी गैलरी में बिराजमान था---और उधर मंच पर गुरदास मान ने इश्क का गिद्धा शुरू कर दिया---गुरदास मान ने अपने जाने पहचाने अंदाज़ में सिख शहीदों का ज़िक्र किया और कहा----
कदे सूली ते,कदे तम्बी ते---
कदे आरे ते---कदे रम्बी ते---
कदे चरखड़ीयां दे दन्दियाँ ते--
कदे सेज विचौणी कंडियां ते-- 
कदे तवियाँ ते--कड़े छवियाँ ते----
गुरदास मान गा रहे थे और वी आई पी गैलरी में बैठे इस तथाकथित युवा नेता का रंग उड़ा जा रहा था---और माथे के बल गहराते जा रहे थे। 





बुधवार, फ़रवरी 27, 2013

भारत-चिँतन:

Tue, Feb 26, 2013 at 9:23 PM
भारतीय न्याय व्यवस्था पर श्वेत-पत्र
उदारीकरण से देश में सूचना क्रांति, संचार , परिवहन, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में सुधार अवश्य हुआ है किन्तु फिर भी आम आदमी की समस्याओं में बढ़ोतरी ही हुई है| आज भारत में आम नागरिक की जान-माल-सम्मान तीनों ही सुरक्षित नहीं हैं| ऊँचे लोक पद धारियों को जनता के पैसे सरकार सुरक्षा उपलब्ध करवा देती है और पूंजीपति लोग अपनी स्वयं की ब्रिगेड रख रहे हैं या अपनी सम्पति, उद्योग, व्यापार की सुरक्षा के लिए पुलिस को मंथली, हफ्ता या बंधी देते हैं| छोटे व्यवसायी संगठित रूप में अपने सदस्यों से उगाही करके सुरक्षा के लिए पुलिस को धन देते हैं और पुलिस का बाहुबलियों की तरह उपयोग करते हैं| अन्य इंस्पेक्टरों अधिकारियों की भी वे इसी भांति सेवा करते हैं| व्यावसायियों को भ्रष्टाचार से वास्तव में कभी कोई आपति नहीं होती, जैसा कि भ्रष्टाचार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधिपति ने कहा है,  वे तो अपनी वस्तु या सेवा की लागत में इसे शामिल कर लेते हैं और इसे अंतत: जनता ही वहन करती है|
भारत में एक सरकारी कर्मचारी को किसी दुराचार का संदिग्ध पाए जाने पर उसे निलंबित किया जा सकता है किन्तु उसे इस अवधि में जीवन यापन भत्ता दिया जाता है और उसे निर्दोष पाए जाने पर सभी बकाया वेतन और परिलब्धियां भुगतान कर नियमित सेवा में पुन: ले लिया जाता है| यदि उसे गंभीर दुराचार का दोषी पाया जाने पर उसकी सेवाएं समाप्त भी कर दी जाएँ तो भुगतान किया गया जीवन यापन भत्ता उससे वसूल नहीं किया जाता| दूसरी ओर यदि एक सामान्य नागरिक को किसी अपराध का संदिग्ध पाया जाये तो अनावश्यक होने पर भी पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है और मजिस्ट्रेट उसे जेल भेज देता है| देश के पुलिस आयोग के अनुसार 60% गिरफ्तारियां अनावश्यक हो रही हैं| गिरफ्तार व्यक्ति की प्रतिष्ठा को तो अपुर्तनीय क्षति होती ही है, इसके साथ साथ उसका परिवार इस अवधि में उसके स्नेह, संरक्षा व सानिद्य से वंचित रहता है| गिरफ्तार व्यक्ति हिरासती यातनाएं सहने के अतिरिक्त अपने जीविकोपार्जन से वंचित रहता है जिसका परिणाम उसके आश्रितों व परिवार को अनावश्यक भुगतना पड़ता है| कमजोर और भ्रष्ट न्याय व्यवस्था के चलते देश में मात्र 2% मामलों में दोष सिद्धियाँ हो पाती हैं और बलात्कार जैसे संगीन अपराधों में भी यह 26% से अधिक नहीं है| एक लम्बी अवधि की उत्पीडनकारी कानूनी प्रक्रिया के बाद जब यह गिरफ्तार व्यक्ति मुक्त हो जाता है तो भी उसे इस अनुचित हिरासत की अवधि के लिए कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाती जबकि सरकारी कर्मचारियों के दोषमुक्त होने पर उन्हें सम्पूर्ण अवधि का वेतन और परिलब्धियां भुगतान की जाती हैं| हमारी यह व्यवस्था जनतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत और साम्रज्यवादी नीतियों की पोषक है| दिल्ली पुलिस (दंड एवं अपील) नियम,1980 के नियम 11(1) में तो यह विधिवत प्रावधान है कि यदि एक पुलिस अधिकारी को न्यायालय द्वारा दोष सिद्ध कर दिया जाता है तो भी वह अपील के निस्तारण तक सेवा में बना रहेगा| उल्लेखनीय है कि सी बी आई भी इसी नियम से शासित है और इससे लाभान्वित होती है| ऐसे भी उदाहरण हैं जहां इस नियम की आड़ में सरकार ने पुलिस अधिकारियों को अन्तिमत: दोषी पाए जाने के बावजूद भी 12 वर्ष तक सरकारी सेवा में बनाए रखा क्योंकि इन्हीं पुलिस अधिकारियों का अनुचित उपयोग कर लोग सत्ता में बने हुए हैं| ऐसी स्थिति में यह विश्वास करने का कोई कारण  नहीं कि देश में लोकतंत्र है  बल्कि लोकतंत्र तो मात्र कागजों तक सिमट कर रह गया है|   

अमेरिका में एक अभियुक्त को “संयुक्त राज्य का अपराधी” कहा जाता है और वहां सभी आपराधिक मामले राज्य द्वारा ही प्रस्तुत किये जाते हैं व वहां भारत की तरह कोई व्यक्तिगत आपराधिक शिकायत नहीं होती है| अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या 256 और भारत में 130 पुलिस है जबकि अमेरिका में भारत की तुलना में प्रति लाख जनसंख्या 4 गुणे मामले दर्ज होते हैं| तदनुसार भारत में प्रति लाख जनसंख्या 68 पुलिस होना पर्याप्त है| किन्तु भारत में पुलिस बल का काफी समय विशिष्ट लोगों को वैध और अवैध सुरक्षा देने, उनके घर बेगार करने, चौथ वसूली करने आदि में लग जाता है| अपनी बची खुची ऊर्जा व समय  का उपयोग भी पुलिस अनावश्यक गिरफ्तारियों में करती है| आपराधिक मामले को अमेरिका में मामला कहा जाता है और सिविल मामले को वहां सिविल शिकायत कहा जाता है| भारत में भी गोरे कमेटी ने वर्ष 1971 में यही सिफारिश की थी कि समस्त आपराधिक मामलों को राज्य का मामला समझा जाये किन्तु उस पर आज तक कोई सार्थक कार्यवाही नहीं हुई है| हवाई अड्डों की सुरक्षा में तैनात पुलिस आगंतुकों के साथ, जो उच्च वर्ग के होते हैं, बड़ी शालीनता से पेश आती है| वही मौक़ापरस्त पुलिस थानों  में पहुंचते ही गाली-गलोज, अभद्र व्यवहार और मार पीट पर उतारू हो जाती है क्योंकि उसे इस बात का ज्ञान और विश्वास है कि आम आदमी उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता चाहे वह किसी भी न्यायिक या गैर न्यायिक अधिकारी के पास चला जाये, कानून और व्यवस्था उसके पक्ष में ही रहेगी|  राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार एक वर्ष में पुलिस द्वारा मानव अधिकारों के हनन के सभी प्रकार के मात्र 141 मामले बताये जाते हैं जिनमें 466 पुलिस अधिकारियों को दोष सिद्ध किया गया| वहीं एशियाई मानव अधिकार आयोग के अनुसार देश में 9000 मामले तो मात्र हिरासत में मौत के हैं| इसमें अन्य मामले जोड़ दिए जाएँ तो यह आंकड़ा एक लाख को पार कर जाएगा| यह स्थिति पुलिस की कार्यप्रणाली और तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने की सिद्धहस्तता का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करती है| जब  आपराधिक मामलों में न्याय के लिए ऐसी पुलिस पर निर्भर रहना पड़े तो न्याय एक स्वप्न से अधिक कुछ नहीं हो सकता| भारतीय रिजर्व बैंक की सुरक्षा में तैनात पुलिस कर्मियों की समय-समय पर अचानक जांच में काफी नफरी नदारद भी पाई जाती है और उस पर कोई कार्यवाही नहीं होती है| यह पुलिस और उसके वरिष्ठ अधिकारियों की कर्तव्यनिष्ठा का द्योतक है| |

देश में कानून और न्यायव्यवस्था की दशा में सोचनीय  गिरावट आई है समाज में बढती आर्थिक विषमता ने इस आग में घी का काम किया है| इस स्थिति के लिए हमारे न्यायविद, पुलिस अधिकारी और राजनेता संसाधनों की कमी का हवाला देते हैं और विदेशों की स्थिति से तुलना कर गुमराह करते हैं| किन्तु उनके इस तर्क में दम नहीं है| पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित महानगरीय संस्कृति को छोड़ दिया जाये तो भारत एक आध्यात्मिक चिंतन और उन्नत सांस्कृतिक पृष्ठ भूमि वाला देश है| यहाँ लोग धर्म- कर्म और ईश्वरीय सत्ता में विश्वास करते हैं| भारत में मात्र 4.2% लोगों के पास बंदूकें हैं जबकि हमारे पडौसी देश पकिस्तान में 11.6% और अमेरिका में 88.8% लोगों के पास बंदूकें हैं| इससे रक्तपात और अपराध की संभावना का अनुमान लगाया जा सकता है| अमेरिका में कानून, और कानून का उल्लंघन करने वालों के प्रति न्यायाधीशों- दोनों ही का रुख सख्त हैं अत: कानून का उल्लंघन करने वालों को विश्वास है कि उन्हें न्यायालय दण्डित करेंगे| इस कारण अपराधी लोग वहां प्राय: अपना अपराध कबूल कर लेते हैं जिससे मामले के परीक्षण में लंबा समय नहीं लगता और ऐसी स्थिति में दंड देने में न्यायाधीशों का उदार रवैया रहता है यद्यपि उनके पास दंड की अवधि निर्धारित करने के लिए भारत की तरह ज्यादा विवेकाधिकार नहीं होते| ऐसी व्यवस्था के चलते अमेरिका में  75% सिविल  मामलों में न्यायालय में जाने से पूर्व ही समझौते हो जाते हैं| अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या 5806 मुकदमे दायर होते हैं जबकि भारत में यह दर मात्र 1520 है| इसके अतिरिक्त अमेरिका में संघीय और राज्य कानूनों के लिए अलग अलग न्यायालय हैं| उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति बैंक का एटीएम तोड़ता है तो बैंक संघ का विषय होने के कारण संघीय न्यायालय का मामला होगा किन्तु वही व्यक्ति यदि एटीएम कक्ष में किसी व्यक्ति की चोरी करता है तो यह राज्य का मामला होगा| प्रति लाख जनसंख्या पर अमेरिका में 10.81  और भारत में 1.6 न्यायाधीश हैं | एक अनुमान के अनुसार भारत के न्यायालयों में दर्ज होने वाले मामलों में से 10% तो प्रारंभिक चरण में या तकनीकी आधार पर ही ख़ारिज कर कर दिये जाते हैं, कानूनी कार्यवाही लम्बी चलने के कारण 20% मामलों में पक्षकार अथवा गवाह मर जाते हैं| 20% मामलों में पक्षकार थकहार कर राजीनामा कर लेते हैं और 20% मामलों में गवाह बदल जाते हैं परिणामत: शेष 30 % मामले ही पूर्ण परीक्षण तक पहुँच पाते हैं| इस प्रकार परिश्रम और समय की लागत के दृष्टिकोण से भारत में दायर होने वाले मामलों को आधा ही मना जा सकता है और भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर दायर होने वाले मामलों की संख्या मात्र 760 आती है जो अमेरिका से लगभग 1/7 है और भारत में प्रति लाख जनसंख्या न्यायाधीशों की संख्या लगभग 1/7 ही है जो दायर होने वाले मामलों को देखते हुए किसी प्रकार से कम नहीं है| अमरीका में न्यायालय में दिए गए अपने वक्तव्य से एक वकील बाध्य है और वह कानून या तथ्य के सम्बन्ध में झूठ नहीं बोल सकता क्योंकि ऐसी स्थिति में दण्डित करने की शक्ति स्वयं न्यायालय के ही पास है| मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति किरुबकर्ण ने हाल ही एक अवमान मामले की सुनवाई में कहा है कि देश की जनता न्यायपालिका से पहले ही कुण्ठित है अत: मात्र 10% पीड़ित लोग ही न्यायालय तक पहुंचते हैं| यह स्थिति न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर स्वत: ही एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाती है|


पूर्ण न्याय की अवधारणा में सामाजिक और आर्थिक न्याय को ध्यान में रखे बिना न्याय अपने आप में अपूर्ण है| भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय 60000 रुपये, न्यूनतम मजदूरी 72000 रुपये और एक सत्र न्यायधीश का वेतन 720000 रुपये वार्षिक है वहीँ यह अमेरिका में क्रमश: 48000, 15000 और 25000 डॉलर वार्षिक है| अमेरिका में न्यायालयों में वर्ष भर में मात्र 10 छुटियाँ होती हैं वहीँ भारत में उच्चतम न्यायालय में 100, उच्च न्यायलय में 80 और अधीनस्थ न्यायालयों में 60 छुटियाँ होती है| इस दृष्टि से देखा जाये तो भारतीय न्यायाधीशों का वेतन बहुत अधिक है |इस प्रकार भारत की जनता कानून और न्याय प्रशासन पर अपनी क्षमता से काफी अधिक धन व्यय कर रही है| इस सत्य को किसी वर्ग द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किये जाने से भी तथ्य नहीं बदल जाता| उक्त धरातल स्तरीय तथ्यों को देखें तो भारत में कानून और न्याय प्रशासन के मद पर होने वाला व्यय किसी प्रकार से कम नहीं है बल्कि देश में कानून-व्यवस्था और न्याय प्रशासन कुप्रबंधित हैं| भारत में कानून, प्रक्रियाओं और अस्वस्थ परिपाटियों के जरिये  जटिलताएं उत्पन्न कर न्यायमार्ग में कई बाधाएं खड़ी कर दी गयी हैं जिससे मुकदमे द्रौपदी के चीर की भांति लम्बे चलते हैं| भारत में 121 करोड़ की आबादी के लिए 17 लाख वकील कार्यरत हैं अर्थात प्रति लाख जनसँख्या पर 141 वकील हैं और अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या पर 391 वकील हैं| परीक्षण पूर्ण होने वाले मामलों के साथ इसकी तुलना की जाये भारत में यह संख्या 60 तक सीमित होनी चाहिए| दूसरी ओर हमारे पडौसी चीन में 135 करोड़ लोगों की सेवा में मात्र 2 लाख वकील हैं| इस दृष्टिकोण से भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर चीन से 10 गुने ज्यादा वकीलों की फ़ौज हैं जिनके पालन पोषण का दायित्व अप्रत्यक्ष रूप से न्यायार्थियों पर आ जाता है| दिल्ली राज्य की तो स्थिति यह है कि वहां हर तीन सौ में एक वकील है| वहीँ  चीन का यह सुखद तथ्य है कि वहां न्यायालयों के लिए निर्णय देने की समय सीमा है और इस सीमा के बाद निर्णय देने के लिए उन्हें उच्च स्तरीय न्यायालय से अनुमति लेनी पड़ती है जबकि भारत में तो न्यायालय के मंत्रालयिक कर्मचारियों के लिए तारीख पेशी देना, जैसा कि रजिस्ट्रार जनरलों की एक मीटिंग में कहा गया था, एक आकर्षक धंधा है और उससे न्यायालयों की बहुत बदनामी हो रही है|

उच्चतम और उच्च न्यायालयों में प्रमुखतया सरकारों के विरुद्ध मामले दर्ज होते हैं और यदि सरकारी बचाव पक्ष अपना पक्ष सही सही और सत्य रूप में प्रस्तुत करे तो मुकदमे आसानी से निपटाए जा सकते हैं किन्तु सरकरी पक्ष अक्सर सत्य से परे होते हैं फलत: मुकदमे लम्बे चलते हैं| यदि मामला सरकार के विरुद्ध निर्णित हो जावे तो भी उसकी अनुपालना नहीं की जाती क्योंकि सरकारी अधिकारियों को विश्वास होता है कि न्यायाधीश उनके प्रति उदार हैं अत: वे चाहे झूठ बोलें या अनुपालना न करें उनका कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है, आखिर एक नागरिक को ही गीली लकड़ी की भांति अन्याय की अग्नि में सुलगना है| अत: एक ही समान  मुकदमे अनावश्यक रूप से बारबार दर्ज होते रहते हैं|  उच्चतम और उच्च न्यायालयों में सामान्यतया कोई साक्ष्य नहीं होता है और मात्र बहस व शपथपत्र के आधार पर निर्णय होते हैं अत: इनमें लंबा समय लगने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है| फ़ास्ट ट्रेक न्यायालयों का भी कोई महत्व नहीं रह जाता जब मामले को उच्च स्तरीय न्यायालयों द्वारा स्टे कर दिया जाये और उसे फ़ास्ट ट्रैक मामला ही मानते हुए तुरंत निपटान नहीं दिया जाए| देश के प्रबुद्ध, जागरूक, जिम्मेदार और निष्ठावान नागरिकों से अपेक्षा है कि वे इस स्थिति पर मंथन कर देश में अच्छे कानून का राज पुनर्स्थापित करें|
जय हिन्द ! 

शनिवार, फ़रवरी 23, 2013

हैदराबाद बम विस्‍फोट

22-फरवरी-2013 17:29 ISTसंसद में गृहमंत्री द्वारा दिया गया वक्‍तव्‍य 
गृहमंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे ने आज संसद में हैदराबाद बम विस्‍फोट पर एक वक्‍तव्‍य दिया जो इस प्रकार है:- 
21 फरवरी, 2013 को हैदराबाद शहर के अतिव्‍यस्‍त इलाके दिलसुख नगर के एक स्‍थानीय बस स्‍टॉप और कैंटीन के पास दो बम धमाके हुए। ये दोनों स्‍थान एक दूसरे से 150 मीटर की दूरी पर स्थित हैं, जहां पहला बम विस्‍फोट शाम के 6.58 मिनट और दूसरा विस्‍फोट 7.01 मिनट पर हुआ। शुरूआती जांच से पता चला है कि दोनों स्‍थानों पर विस्‍फोट के लिए आईईडी का इस्‍तेमाल किया गया था जो साइकिल पर लगाए गए थे। विस्‍फोट में 16 लोगों की मृत्‍यु हो गयी और 117 लोग घायल हुए, जिनमें 4 लोग गंभीर रूप से घायल हैं। विस्‍फोट के तुरंत बाद राज्‍य सरकार ने आकस्मि‍क चिकित्‍सा दलों को तैनात किया और 25 एम्‍बूलेंस गाडि़यां घायलों को अस्‍पताल पहुंचाने के काम में लगा दी गयीं। राज्‍य पुलिस और राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की हैदराबाद इकाई तुरंत मौके पर पहुंची और उसने घेराबंदी करके सबूतों को जमा किया। राज्‍य फोरेंसिक दलों को भी काम में लगाया गया ताकि अपराध स्‍थल से सबूत जमा किए जा सकें। महानिरीक्षक के नेतृत्‍व में एनआईए का एक दल और विस्‍फोट के बाद स्थिति की जांच करने वाले एनएसजी के एक दल को कल रात साढ़े नौ बजे एक विशेष विमान से दिल्‍ली से हैदराबाद भेजा गया था। ये दोनों दल साढ़े 11 बजे हैदराबाद पहुंच गए थे। इस संबंध में दो मुकदमें दर्ज किए गए हैं। पहला मुकदमा सीआर नम्‍बर-14/2013 सरूरनगर पुलिस थाना, साइबराबाद और दूसरा मुकदमा सीआर नम्‍बर 56/2013 मल्‍कपेट पुलिस थाना, हैदराबाद सिटी दर्ज किए गए। आंध्रप्रदेश पुलिस के साथ मिलकर एनआईए मामले की जांच करेगी। 

आज सुबह मैं, गृह सचिव और एनआईए के महानिदेशक के साथ हैदराबाद गया और राज्‍यपाल, मुख्‍यमंत्री, प्रमुख सचिव, पुलिस महानिदेशक, पुलिस आयुक्‍त और अन्‍य वरिष्‍ठ अधिकारियों के साथ स्थिति की समीक्षा की। मैंने घटना स्‍थल का दौरा किया और उसके बाद अस्‍पताल में घायलों से मिला। 

माननीय प्रधानमंत्री ने मृतकों के लिए दो लाख रुपये और घायलों के लिए 50 हजार रुपये अनुग्रह राशि की घोषणा की है। राज्‍य सरकार ने भी मृतकों के लिए 6 लाख और घायलों के लिए 50 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक की अनुग्रह राशि की घोषणा की है। इसके अलावा राज्‍य सरकार घायलों के उपचार का पूरा खर्च भी वहन करेगी। स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। 

मैं विस्‍फोट में अपने परिजनों को खो देने वाले शोक संतप्‍त परिवारों के प्रति हार्दिक संवेदना व्‍यक्‍त करता हूं। सरकार इस तरह के कायरतापूर्ण आतंकी हमलों का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और वह विस्‍फोट करने वाले अपराधियों और उनके आकाओं को पकड़ने का पूरा प्रयास करेगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि उन्‍हें कानून के मुताबिक सजा दी जाए। (PIB)
हैदराबाद बम विस्‍फोट
वि. कासोटिया/अरुण/दयाशंकर- 693

रविवार, फ़रवरी 03, 2013

भारतीय तटरक्षक ने समुद्री सुरक्षा पर ध्‍यान केंद्रित किया

01-फरवरी-2013 15:23 IST
आज इस सेवा बल के पास 77 पोत और 56 विमान
रक्षा पर विशेष लेख  *हामिद हुसैन
    भारतीय तटरक्षक 01 फरवरी, 2013 को अपनी 36वीं वर्षगांठ मना रहा है। अपनी स्‍थापना के बाद से यह सेवा एक बहुआयामी और एक उत्‍साहपूर्ण बल के रूप में यह उभरी है जो बहु-भूमिका वाले पोतों और विमानों की तैनाती कर हर समय भारत के समुद्री क्षेत्रों की चौकसी करता है।
    भारतीय नौ-सेना के दो फ्रिगेट और सीमा शुल्‍क विभाग के 5 नावों की मामूली सूची से शुरूआत कर आज इस सेवा बल के पास 77 पोत और 56 विमान हैं। गत वर्ष के दौरान एक प्रदूषण नियंत्रण पोत, 6 गश्ती पोत, 4 वायु कुशन पोत, 2 इंटरसेप्‍टर नौकाएं शामिल की गई हैं। इसके अतिरिक्‍त क्षेत्रीय मुख्‍यालय (एनई) की स्‍थापना तथा 8 सीजी स्‍टेशन का सक्रियण, सक्रियण/3 सीजी स्‍टेशनों की शुरूआत की योजना 2013 के प्रारंभ में की गई है।
    भारतीय तटरक्षक आज तीव्र विस्‍तार की राह पर है। इसमें आधुनिक स्‍तर के पोत, नौकाएं और विमान का निर्माण विभिन्‍न शिपयार्ड/ सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम में किया जा रहा है और भविष्‍य में तटरक्षक अकादमी की स्‍थापना की जाएगी। तटरक्षक के संगठनात्‍मक ढाँचे में 5 क्षेत्रीय मुख्‍यालय, 12 जिला मुख्‍यालय, 42 स्‍टेशन तथा सभी भारतीय तटों पर 15 एयर यूनिट कार्य कर रहे हैं।
    श्रम शक्ति की दृष्टि से इस सेवा ने सामान्‍य ड्यूटी में महिला अधिकारियों के लिए अल्‍प सेवा नियुक्ति की शुरूआत, मेधावी अधीनस्थ अधिकारियों को विभागीय पदोन्‍नति और विशेष नियुक्ति अभियान चलाकर अपने श्रम शक्ति में विस्‍तार किया है।
    बृहत विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) और तट रक्षा पर सतत निगरानी के लिए औसतन 20 पोत और 8-10 विमान तैनात किए गए है। भारतीय तटरक्षक ने तटीय निगरानी नेटवर्क (सीएसएन) की भी स्‍थापना की है जिसमें तटीय निगरानी रडार नेटवर्क और 46 सुदूर स्‍थलों पर इलेक्‍ट्रो ऑप्‍टीक सेंसर शामिल है। इन सेंसरों में 36 मुख्‍य क्षेत्र में, 6 लक्ष्‍यद्वीप समूह और 4 अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में लगाएं गए हैं।
    भारतीय तटरक्षक द्वारा तट के आस-पास के गाँवों में नियमित समुदाय संपर्क कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्‍य मछली पकड़ने वाले समुदायों को मौजूदा सुरक्षा स्थितियों के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ खुफिया जानकारी जुटाने के लिए उन्‍हें सतर्क रखना है। इसके अतिरिक्‍त गत वर्षों के दौरान भारतीय तट रक्षक ने 20 तटीय सुरक्षा अभ्‍यास और 21 तटीय सुरक्षा अभियान चलाया है।
    भारतीय तटरक्षक द्वारा हर समय भारतीय खोज और बचाव क्षेत्रों में समुद्री जांच और बचाव किया जाता है। इस कठिन परिस्थिति में साहस दिखाते हुए पिछले वर्ष तटरक्षरक ने 204 लोगों की जान बचाई है। इस अवधि के दौरान भारतीय तटरक्षक द्वारा कुल 30 चिकित्‍सा बचाव किए गए।
    भारतीय तटरक्षक ने अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी अपनी पहचान स्‍थापित की है। सहयोग समझौता/ ज्ञापन के तहत संस्‍थागत यात्राएं नियमित की जाती हैं। 12वीं भारत-जापान तटरक्षक उच्‍च स्‍तरीय बैठक जापान के टोक्‍यो में जनवरी, 2013 में की गई। अक्‍तूबर, 2012 में नई दिल्‍ली में 8वां एशियाई तटरक्षक प्रमुखों का सम्‍मेलन आयोजित किया गया। यह सम्‍मेलन काफी महत्‍वपूर्ण था क्‍योंकि इसे पहली बार भारत में आयोजित किया गया। इसके अतिरिक्‍त, भारत-पाकिस्‍तान संयुक्‍त कार्य समूह बैठक का आयोजन पहली बार नई दिल्‍ली में जुलाई, 2012 में किया गया।
    भारतीय तटरक्षक लगातार अपना विस्‍तार कर रहा है और जिससे इसकी क्षमता में और विकास हो रहा है। सक्षम और पेशेवर अधिकारियों द्वारा आधुनिक पोतों और विमानों का संचालन किया जा रहा है जो देश सेवा और समुद्री सुरक्षा में कार्य कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते है। वर्ष 2013 के लिए भारतीय तटरक्षक का शीर्षक है 'समुद्री सुरक्षा पर केंद्रित लक्ष्‍य'। यह शीर्षक इस सेवा की प्रतिबद्धता और संकल्‍प को प्रदर्शित करता है जो इसके आदर्श वाक्‍य 'वयम् रक्षाम:' में प्रतिबिम्‍बित है जिसका अर्थ है 'हम रक्षा करते है'। (PIB) (पसूका) 
*एपीआरओ (रक्षा) भारतीय तटरक्षक ने समुद्री सुरक्षा पर ध्‍यान केंद्रित किया 
मीणा/आनंद/लक्ष्‍मी - 33
पूरी सूची - 01.02.2013

शुक्रवार, जनवरी 25, 2013

युवा मामले और खेल//विशेष लेख//PIB

नशीले पदार्थों और मद्यपान की रोकथाम के प्रति जागरूकता और शिक्षा        नशीले पदार्थों और शराब की लत किसी एक व्यक्ति की ही नहीं बल्कि एक परिवार की, सामाजिक-सांस्कृतिक, स्वास्थ्य, राजनीतिक और विकास की समस्या है। यदि इस समस्या का समाधान नहीं किया जाता तो यह गरीबी को बढ़ावा देगी और राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, स्वस्थ मानवीय संसाधनों और राष्ट्र के कल्याण के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

     राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2004 में बताया गया है कि भारत में लगभग 73.2 मिलियन लोग मद्यपान और नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। मणिपुर और पंजाब जैसे राज्य नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार के अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों, जो क्रमश: स्वर्ण त्रिकोण और गोल्डन क्रेसेंट नाम से प्रचलित हैं, से नजदीकी के कारण गंभीर समस्या से जुझ रहे हैं। वे नशीले पदार्थों के अवैध कारोबारियों, दुरूपयोगकर्ताओं, मद्यपान के गंतव्य स्थल और नशीले पदार्थों तथा संबद्ध एचआईवी, विद्रोह, आतंकवाद और राजनीतिक अशांति की समस्याओं का केन्द्र बने हुए हैं।

     पंजाब में किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि 67 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के एक सदस्य को नशीले पदार्थों अथवा शराब की लत है; 70 प्रतिशत युवाओं को नशीले पदार्थों तथा शराब पीने के लिए फंसाया गया; प्रत्येक तीसरे छात्र और प्रत्येक दसवीं छात्रा ने किसी न किसी बहाने नशा करना शुरू कर दिया है तथा कॉलेज जाने वाले दस छात्रों में से सात नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं।

     मणिपुर में अनुमान लगाया गया है कि वहां लगभग 45,000 से लेकर 50,000 लोग नशा करते हैं, जिनमें से लगभग आधे लोग नशीली दवाओं के इंजेक्शन लगाते हैं। सर्वेक्षण से पता चला है कि 12 प्रतिशत नशेड़ी 15 वर्ष तक आयु समूह के हैं, 31.32 प्रतिशत 16-25 वर्ष आयु समूह के और 55.88 प्रतिशत 25-35 वर्ष आयु समूह के हैं।

     नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में बढ़ती हुई संख्या सामान्य रूप में समाज को और खासतौर पर युवाओं (किशोर) को अपंग करने की दिशा में संकेत है। ये लोग मुख्य रूप से अपनी आयु की अतिसंवेदनशीलता, मित्रों के दबाव और प्रयोग करने के स्वभाव के कारण नशा करने लगते हैं। इन हालात में युवा वर्ग और उनके परिवार सर्वाधिक प्रभावित समूह का एक हिस्‍सा बन जाते हैं।

     तथापि, नशीले पदार्थों के दुरूपयोग की समस्या, जो एचआईवी संक्रमण और एड्स जैसी नहीं है, एक गैर संचारी, निवार्य समस्या है, जिसे जागरूकता, रोकथाम की जानकारी, प्रोत्साहन, समर्थन आदि सेवाओं के संयुक्त प्रयासों से हल किया जा सकता है।

     उपरोक्त पृष्ठभूमि में युवा मामले और खेल मंत्रालय की स्वायत संस्था, नेहरू युवा केन्द्र संगठन (एनवाईकेएस) ने साल भर चलने वाली एक पायलट परियोजना को कार्यान्वित किया। इस परियोजना का नाम रखा गया नशीले पदार्थों के दुरूपयोग और मद्यपान की रोकथाम के लिए जागरूकता और शिक्षा। इस परियोजना के लिए सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ने आर्थिक सहायता दी। यह परियोजना पंजाब में दस जिलों के 75 खंडों के 3,000 गावों में और मणिपुर में सात जिलों के 25 खंडों के 750 गांवों में कार्यान्वित की गई।

     इस परियोजना के अधीन नशीले पदार्थों और शराब की लत को छुड़ाने के लिए विशेष रूप से किशोरों और युवाओं के अतिसंवेदनशील समूहों और उनके परिवारों तथा समुदाय के सदस्यों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। दूसरी ओर, ग्राम आधारित एऩवाईकेएस युवा क्लबों, महिला समूहों, ग्राम पंचायतों, स्थानीय राजनीतिक और धार्मिक नेताओं, गांवों के प्रभावशाली लोगों तथा सेवा प्रदाताओं जैसे हितधारकों का समर्थन जुटाया गया।

     इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य शराब तथा नशीले पदार्थों की लत के रोकथाम के तरीकों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना था।

     परियोजना को 3750 लक्षित गांवों में वास्तविक रूप में लागू करने से पहले इसके कार्यान्वयन संबंधी दिशा निर्देश, कार्य-योजना, समय रेखा, अपेक्षित परिणाम तथा रिपोर्टिंग के तौर-तरीके विकसित किए गए और एनवाईकेएस के क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को उनकी जानकारी दी गई। परियोजना के सफल कार्यान्वयन के वास्ते पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उपायुक्तों की अध्यक्षता में जिलों में विशेष सलाहकार समितियां गठित की गईं।

     यह स्वयं सिद्ध है कि परियोजना की सफलता उसके कार्यकर्ताओं के ज्ञान और प्रेरणादायक स्तर और क्षमता निर्माण पर निर्भर करती है। इसलिए परियोजना के कार्यकर्ताओं को विभिन्न स्तरों पर सर्वोत्तम प्रशिक्षण देने के गंभीर प्रयास किए गए।

     परियोजना के कारगर कार्यान्वयन के लिए उसकी गतिविधियों के निरीक्षण तथा निगरानी के साथ-साथ प्रशिक्षकों के रूप में कार्य करने के लिए जिला तथा राज्य स्तर पर 40 क्षेत्रीय कार्यकर्ता तैयार किए गए और उनके प्रशिक्षण के लिए दो-दो तथा चार-चार दिन की प्रशिक्षण एवं मीडिया कार्यशालाएं लगाई गईं। इस कार्यक्रम के दौरान आईईसी सामग्री स्थानीय भाषाओं में तैयार की गईं और परियोजना संबंधी गतिविधियों के दौरान वितरित की गई। इसी प्रकार खंड स्तर पर क्षेत्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दौरान 125 एनवाईकेएस राष्ट्रीय युवा कोर के स्वयं सेवकों को प्रशिक्षित किया गया।

     17 जिलों में से प्रत्येक में सक्रिय भागीदारों और मुख्य हितधारकों का समर्थन प्राप्त करने के लिए एनवाईकेएस की अग्रणी युवा क्लबों और महिला समूह नेताओं, पीआरआई सदस्यों, धार्मिक और राजनीतिक नेताओं, जिला प्रशासन के विभागों के प्रमुखों, गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों, अभिभावकों, शिक्षकों, मीडिया के लोगों के लिए जिला स्तर पर एक-एक दिन के सम्मेलन आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम के अधीन 3,400 मुख्य हितधारकों ने कार्यक्रम में भाग लिया।

   परियोजना के कार्यान्‍वयन की प्रक्रिया में स्‍थानीय युवाओं में स्‍वामित्‍व, सहभा‍गिता और नेतृत्‍व की भावना सुनिश्चित करने के लिए प्रत्‍येक लक्षित गांव में से 10 युवा क्‍लब सदस्‍यों और नेताओं को इस तरह से चयनित किया गया कि उनमें से दो 13-19, 20-24, 25-29 , 30-35 और 35 से अधिक उम्र के आयु वर्ग के हों। साथ ही इनके अनुपात में क्रमश: 70 प्रतिशत पुरूष और 30 प्रतिशत महिलाएं हो। परिणामस्‍वरूप परियोजना के तहत स्‍थानीय गावों के कुल 37,500 एनवाईकेएस युवा नेताओं को चुना गया। उन्‍हें ब्‍लॉक स्‍तर पर प्रशिक्षण दिया गया तथा उनकी क्षमताएं बढ़ाई गईं ताकि वे स्‍वैच्छिक रूप से निजी संपर्क और मित्र समूह शैक्षिक कार्यक्रम तथा गांवों में स्‍था‍नीय स्‍तर की गतिविधियां चला सकें।

एनवाईकेएस के प्रशिक्षित और प्रोत्‍साहित युवा क्‍लब के नेताओं और राष्‍ट्रीय युवा कोर स्‍वयंसेवाकों ने ग्राम पंचायत प्रधानों की अध्‍यक्षता में 3,750 ग्रामीण परामर्श समितियां गठित की, ताज़ा स्थिति, परियोजना के उद्देश्‍यों, अनुमानित परिणाम, विकसित गांव व्‍यापक कार्यान्‍वयन योजनाओं पर चर्चा की तथा यह  भी सुनिश्चित किया कि ऐसी बैठकें नियमित रूप से आयोजित हों। इस प्रकिया से एक सक्षम माहौल बनाने, स्‍थानीय युवा नेताओं, महिला समूहों, राजनीतिक और धार्मिक नेताओं, परिवार तथा सामुदायिक सदस्‍यों को ग्रामीण स्‍तर पर परियोजना की गतिविधियों के लिए सहयोग करने, भागीदारी निभाने और कार्य करने हेतु जुटाने में मदद मिली।

व्‍यक्तिगत संपर्क और मित्र समूह शिक्षा कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित 37,500 स्‍थानीय गांव युवा क्‍लब सदस्‍यों में से प्रत्‍येक ने कम से कम अपने आयु वर्ग के चार व्‍यक्तियों को शिक्षित किया, उनके साथ प्राथमिक रोकथाम संदेश बांटें, उन्‍हे परामर्श और नशा-मुक्‍त सेवाएं  दी, मिथ्‍याओं को दूर किया, जागरूकता और ज्ञान बढ़ाया तथा मीडिया कार्यशाला के तहत विकसित आईईसी सामग्री प्रदान की। जिन व्‍यक्तियों से संपर्क किया गया उन्‍हें प्रण लेने को भी कहा गया- 'मैं निर्णय लेता हूं कि मैं नशा/शराब नहीं लूंगा और दूसरों को ऐसा करने से रोकूंगा।'

 इस गतिविधि के तहत कुल 3,75,000 युवाओं से संपर्क किया गया और इस प्रयास से ऐसे 62,654 व्‍यक्तियों की पहचान हुई जो किसी न किसी तरह का नशा करते थे।

एक प्रायोगिक योजना होने के कारण 17 वर्ष से कम आयु के केवल 680 नशा करने वालों को मुफ्त इलाज और परामर्श सेवाएं उपलब्‍ध कराई गईं। तथापि गंभीर समस्‍या पंजाब और मणिपुर में बनी हुई है जहां नशा करने वालों के इलाज के लिए पर्याप्‍त सुविधाएं, देखरेख और  सहयोग की कमी है।

इसके अतिरिक्‍त नशीली दवाओं के दुरूपयोग और उसके परिणामों पर शिक्षित करने के लिए कई गतिविधियां आयोजित की गईं। ग्रामीण स्‍तर पर खुले मंच पर चर्चाएं, विशेषज्ञों द्वारा व्‍याख्‍यान, नुक्‍कड़ नाटक, स्‍कूलों में चित्रकला प्रतियोगिता जैसी कई गतिविधियां चलाई गईं। 

     इन गतिविधियों के जरिए पंजाब और मणिपुर राज्य के 17 जिलों में 3,750 गांवों के 1,17,02,740 व्यक्तियों (65,26,956 पुरुष और 51,75,784 महिला) तक लाभ पहुंचा। इस बात की सराहना की जानी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति ने संबंधित गांव की एक या एकाधिक गतिविधियों में भाग लिया। इस कारण लाभार्थियों की वास्तविक संख्या उपर्युक्त वर्णित समग्र गतिविधि के अनुरुप लाभार्थियों की संख्या से कुछ कम हो सकती है।

     परियोजना गतिविधियों के समाचार प्रमुख अखबारों में हजार से भी अधिक बार प्रकाशित हुए। पंजाब में दैनिक भास्कर, अजित, पंजाब केसरी, दैनिक जागरण, इंडियन, देश सेवक, पंजाब जागरण, कपूरथला केसरी, द ट्रिब्यून, पंजाबी ट्रिब्यून, जग बानी, नवन जमाना और मणिपुर में शंघाई एक्सप्रेस, पोकनपहम डेली न्यूज, नाहरओलगी थूडंग डेली न्यूज, गोशम न्यूज, मणिपुर एक्सप्रेस आदि समाचार पत्रों में ये समाचार प्रकाशित किए गए।

     यह अनुभव किया गया कि वृहत् समाजिक जागृति, कार्यक्रम का स्‍वामित्‍व, युवा कार्यकर्ताओं की भागीदारी, किफायती कार्यान्वयन (प्रत्येक व्यक्ति पर तीन रुपए मात्र) मादक द्रव्यों और शराब पीने की प्रवृत्ति के बारे में खुलकर बातचीत करके इसके निवारण के लिए आगे आने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

·         उच्चतर स्तर का राजनैतिक और आधिकारिक दृढ़निश्चय, समर्थन, नियमित बातचीत, इस पर आगे भी अनुसरण जारी रखने, विभिन्न स्तरों पर चलाए गए कार्यों की पहचान और सराहना।

·         उपायुक्तों, समाज कल्याण विभागों के प्रमुख, रेड क्रॉस सोसाइटी और स्थानीय गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाए जाने वाले नशामुक्ति केन्द्रों की नियमित देखरेख, विशेषज्ञ और तकनीकी सहायता।

·         स्थानीय विश्‍वास आधारित संगठन, धार्मिक और राजनैतिक नेता, ग्राम पंचायत प्रधान की प्रमुखता वाली ग्राम परामर्श समितियों का सहयोग, सतत माहौल का निर्माण, सामाजिक गतिशीलता, परियोजना गतिविधियों का दिशानिर्देश और कार्यान्वयन।

·         इस प्रवृत्ति से प्रभावित होने वाले परिवार, अभिभावक और विशेषकर महिलाएं मदद देने के लिए कार्यकर्ता के रुप में काम करने के लिए सामने आईं।

·         स्थानीय संसाधन गतिशीलता और किफायती क्रियान्वयन के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच में एनवाईकेएस के प्रशिक्षित कैडर, गांव के युवा क्लबों के शीर्ष सामने आएं और संबंधित गांव में सेवा के लिए तत्पर हुए तथा साथियों को प्रशिक्षण काफी महत्वपूर्ण रहा।

·         यह समझते हुए कि मादक द्रव्यों और शराब पर निर्भरता उनकी सामाजिक समस्या है गांव के समुदायों ने इससे प्रभावी लोगों के भीतर इस समस्या के निवारण के लिए बातचीत की। और उनकी काउंसिलिंग और चिकित्सकीय मदद के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया।

     एक वर्ष से भी कम अवधि की इस पायलट परियोजना के शुरुआती नतीजे सामाजिक और राजनैतिक तौर पर काफी प्रासंगिक और महत्वपूर्ण रहे हैं। हालांकि इसके लिए जो माहौल तैयार हुआ है उसे आगे भी लोगों के बीच बनाए रखना होगा। इसके लिए कार्यक्रमों को आगे भी पूरे समर्पण के साथ चलाते रहने की आवश्यकता है।

     राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट 2004 की उपलब्धियों को ध्‍यान में रखते हुए एक राष्ट्रीय निवारण कार्यक्रम की ज़रुरत को खारिज नहीं किया जा सकता। अन्य कार्यक्रमों और शोधों से प्राप्त अनुभवों को देखते हुए इस पहल और मॉडल से प्राप्त लाभ को बाकी राज्य में भी दोहराया जा सकता है जिससे इसे वृहत राष्ट्रीय जन आंदोलन बनाया जा सके।
(PIB) 16-जनवरी-2013 15:03 IST
          मीणा/क्वात्रा/प्रियंका/विजयलक्ष्मी/शदीद/गीता-15

बुधवार, दिसंबर 19, 2012

सीबीआई द्वारा आरोप-पत्र दाखिल करना

3286 अनुरोधों में से कुल 1905 मामलों में अभियोजन हेतु मंजूरी दी
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री तथा प्रधान मंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री श्री वी. नारायणसामी ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अनुरोध पर, लोक सेवकों पर अभियोजन को मंजूरी देना एक सतत प्रक्रिया है। केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा उपलब्ध करवाई गई सूचना के अनुसार, पिछले तीन वर्षों अर्थात् 2009, 2010, 2011 और 2012 (31.11.2012 तक) के दौरान, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को 3286 अनुरोधों में से कुल 1905 मामलों में अभियोजन हेतु मंजूरी दी गई है। 

अभियोजन को मंजूरी मिलने पर मामले बंद नहीं हो जाते हैं। इसके द्वारा जांच-पड़ताल किए मामलों में अभियोजन की मंजूरी प्राप्त होने के बाद केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो सक्षम अधिकारक्षेत्र के न्यायालय में आरोप पत्र दायर करता है और संबंधित न्यायालय अपने-अपने अधिकार क्षेत्र के अनुसार निर्णयात्मक कार्यवाही करता है। (PIB) 
सीबीआई द्वारा आरोप-पत्र दाखिल करना  
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वी कासोटिया/यादराम/अखलद-6223

सोमवार, मई 14, 2012

गृहमंत्री ने स्पष्ट कहा

आतंकवाद से निपटने के लिए संस्‍थागत व्‍यवस्‍था की आवश्‍यकता
देश में आतंकवाद का खतरा बड़े स्‍तर पर बरकरार है और इसका सामना करने के लिए हमें एक संस्‍थागत व्‍यवस्‍था की जरूरत है। स्थिति की ग‍ंभीरता को देखते हुए राष्‍ट्रीय आतंक निरोधी केन्‍द्र– एनसीटीसी के गठन में हर दिन की देरी खतरे को और बढ़ा रही है। केन्‍द्रीय गृहमंत्री श्री पी. चिदम्‍बरम ने आज सलाहकार समिति के सदस्यों से यह बात कही। उन्‍होंने कहा कि नक्‍सलवाद और पूर्वात्‍तर में उग्रवाद अब आतंकवादी रूख लेता जा रहा और इनका सामना करने के लिए हमें एक संस्‍थागत व्‍यवस्‍था की जरूरत है। श्री चिदम्‍बरम ने कहा कि आतंकवाद का सामना केवल पुलिस अभियान के तौर पर नहीं बल्कि हमें आतंक निरोधी संगठन की आवश्‍यकता है जिसमें देश की ताकत के सभी तत्‍व- कूटनीतिक, वित्‍तीय, जांच, खुफिया और पुलिस बल संगठित रूप से शामिल हों।

सदस्‍यों ने बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों और सीमापार आतंकवाद तथा नकली नोटों की तस्‍करी और उन्‍हें फैलाए जाने के प्रति चिंता जताई। उन्‍होंने वैश्विक आयाम ले चुके आतंकवाद का सामना करने के लिए एक मजबूत व्‍यवस्‍था बनाने पर जोर दिया । कुछ सदस्‍यों ने इस संदर्भ में एनसीटीसी को जल्दी अंतिम रूप दिए जाने की सलाह दी। सदस्‍यों ने हवाला फंड को भी बंद किये जाने की सलाह दी। सलाहकार समिति के सदस्‍यों ने अफीम और दूसरी नशीली दवाओं की बढ़ती समस्‍या और पंजाब में बढ़ते आतंकवाद पर भी चिंता जताई। उन्‍होंने इसे पाकिस्‍तान से जोड़ते हुए और इनका सामना करने के लिए कठोर उपाय सुझाए।

इससे पहले चर्चा की शुरूआत करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि स्‍थापित आतंकनिरोधी ढांचे में मल्‍टी एजेंसी केन्‍द्र (एमएसी) और सहायक मल्‍टी एजेंसी केन्‍द्रों (एसएमएसी), राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और राष्‍ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) शामिल है। नेटग्रिड तथा अपराध और आपराधिक तलाश नेटवर्क व्‍यवस्‍था स्‍थापित कर दी गई है पर आतंकनिरोधी केन्‍द्र अभी स्‍थापित नहीं किया जा सका है। उन्‍होंने कहा कि केन्‍द्र सरकार द्वारा राज्‍य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण-एमपीएफ की समीक्षा की जा रही है और इसे 31 मार्च 2011 के बाद भी बढ़ाया गया है। योजना के दूसरे चरण की संकल्‍पना का काम भी शुरू हो गया है। एमपीएफ योजना के तहत वर्ष 2009 से 2011 तक 745 नये पुलिस थाने स्‍थापित किये गये है। इसके अतिरिक्‍त 17824 वाहन, 26465 बुलेट प्रुफ जैकेट और 107786 हथियार राज्‍यों और केन्‍द्र शासित पुलिस बलों को मुहैया कराए गये हैं। नक्‍सल प्रभावित इलाकों में निर्धनता से निपटने के लिए कई विकास परक योजनाएं समेकित कार्य योजना (आईएपी) के तहत चलाई जा रही हैं।

सरकार की नीति खुफिया जानकारी पर आधारित अभियान चलाकर आतंकवादियों, जासूसों, मॉड्यूलों के खतरों को निक्रिय करने की है। इस काम को केन्‍द्रीय और राज्‍य की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों द्वारा समन्वित और सतत रूप से किया जा रहा है। इसके परिणामस्‍वरूप 51 पाक समर्थित आतंकवादियों/ जासूसी मॉडयूल को देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में पता लगाकर नष्‍ट किया गया है।

सलाहकार समिति की बैठक में श्री एच. के. दुआ (मनोनीत), आंधप्रदेश से कांग्रेस के श्री मोहम्‍मद अली खान, उत्‍तर प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी के राज्‍यसभा सांसद विनय कटियार, बहुजन समाज पार्टी के उत्‍तर प्रदेश से श्री भीष्‍म शंकर उर्फ कुशल तिवारी, कर्नाटक से भारतीय जनता पार्टी के श्री डी.बी. चन्‍द्रेगौडा, मणिपुर से कांग्रेस के डॉ. थोकचोम मेनया, दिल्‍ली से कांग्रेस के लोक सभा सांसद श्री महाबल मिश्रा, गृहमंत्रालय में राज्‍यमंत्री श्री मुल्‍लापल्‍ली रामचन्‍द्रन और श्री जितेन्‍द्र सिंह शामिल हुए।  (पीआईबी )
11-मई-2012 20:12 IST